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राजस्थान के लोक देवी देवता | Rajasthan GK in hindi

राजस्थान के सभी लोक देवी देवता छुआछूत, जाति-पाँति के विरोधी व गौ रक्षक रहे है। एवं असाध्य रोगों के चिकित्सक रहे है।रामदेवजी लोकदेवताओं मे एक प्रमुख
राजस्थान के लोक-देवता : लोकदेवता से तात्पर्य उन महापुरूषों से है जिन्होंने अपने वीरोचित कार्य तथा दृढ़ आत्मबल द्वारा समाज में सांस्कृतियों मूल्यों की स्थापना, धर्म की रक्षा एवं जन-हितार्थ हेतु सर्वस्व न्यौछावर कर दिया तथा ये अपनी अलौकिक शक्तियों एवं लोक मंगल कार्य हेतु लोक आस्था के प्रतीक हो गये। इन्हें जनसामान्य का दुःखहर्ता व मंगलकर्ता के रूप में पूजा जाने लगा। इनके थान देवल, देवरे या चबूतरे जनमानस मे आस्था के केन्द्र के रूप में विद्यमान हो गये। राजस्थान के सभी लोक देवी देवता छुआछूत, जाति-पाँति के विरोधी व गौ रक्षक रहे है। एवं असाध्य रोगों के चिकित्सक रहे है। इन लोक देवताओ की प्रसिद्धि व लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण उस संस्कृति विशेष से स्वयं को जोड़ना था, जो ग्रामीण समाज के निचले तबके की थी। सरल धर्म व नैतिक शिक्षा जनसाधारण मे लोकप्रिय तो थी ही पर जिस शौर्य व साहस का परिचय इन नायकों ने दिया वह जन-जन के मानस व स्मृति का स्थायी हिस्सा बन गई। इन सभी लोक देवताओं के स्थानों पर गाने व नृत्य की परंपरा विद्यमान है।

     
    राजस्थान के लोक देवता


    लोक देवी-देवताओं सम्बंधी महत्वपूर्ण शब्दावली

    1. नाभा - लोक देवी-देवताओं के भक्त अपने आराध्य देव की सोने, चाँदी, पीतल, ताँबे आदि धातु की बनी छोटी प्रतिकृति गले में बाँधते है उसे नाभा कहते है।
    2. परचा - अलौकिक शक्ति द्वारा किसी कार्य को करना अथवा करवा देना परचा कहलाता है जो शक्ति का परिचय है।
    3. चिरजा - देवी की पूजा अराधना के पद, गीत या मंत्र विशेषकर रात के जागरणों के समय महिलाओं द्वारा गाए जाते है।
    4. देवरे - राजस्थान के ग्रामीण अंचलों मे चबूतरेनुमा बने हुए लोक देवों के पूजा स्थल को देवरे कहते है।
    5. पंचपीर - मारवाड़ अंचल में पाबूजी, हडबू जी, रामदेवजी, मांगलिया व मेहा सहित पाँच लोक देवताओं के पंचपीर कहा गया है। जो कि निम्न दोहे मे परिलक्षित होते है।

    " पाबू, हडबू, रामदेव, मांगलिया मेहा
    पाँचो, पीर पधार, जो गोगाजी जेहा॥"

    राजस्थान के प्रमुख लोक देवता निम्न है -

    1. रामदेव जी

    रामदेव जी
    रामदेवजी लोकदेवताओं मे एक प्रमुख अवतारी पुरूष है। इनका जन्म तंवर वंश के अजमल जी व मैणा दे के घर हुआ। समाज सुधारक के रूप मे रामदेवजी ने मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा व जाति व्यवस्था का घोर विरोध किया। गुरू की महत्ता पर जोर देते हुए इन्होने कर्मो की शुद्धता पर बल दिया। उनके अनुसार कर्म से ही, भाग्य का निर्धारण होता है। वे सांप्रदायिक सौहार्द के प्रेरक थे। मुस्लिम समाज इन्हें 'राम सा पीर' के रूप मे मानते है। राम देव जी का प्रमुख स्थान रामदेवरा (रूणेचा) है, जहां भाद्रपद माह मे विशाल मेला भरता है।
    रामदेवजी एकमात्र लोक देवता जो कवि भी थे।
    अन्य मंदिर - मसूरिया पहाड़ी जोधपुर- विराटिया खुर्द- सूरतखेड़ा चित्तौड़, छोटा रामदेवरा गुजरात
    जन्म स्थान - उडू काश्मेर (बाड़मेर) विक्रम सवत् 1462 (1405 ई.)
    रामदेव जी के पिता - अजमल रामदेव जी की माता - मेणा-दे
    रामदेवजी की पत्नि - नेतल-दे रामदेवजी की बहन - मेघावल जाति की डालीबाई
    रामदेवजी के गुरू - बालिनाथ । मुख्य मंदिर - रूणेचा/रामदेवरा
    समाधि - राम सरोवर पाल (रूणेचा, जैसलमेर) भाद्रपद शुक्ला एकादशी (1458ई.)1931 ई.
    रामदेव जी की समाधि परबीकानेर महाराजा, गंगासिंह ने मंदिर बनवाया।
    विशेष - बाबा रामदेव का मेला भाद्रपद शुक्ला द्वितीय से एकादशी तक रामदेवरा मे लगता है।
    - रामदेवरा का मेला साम्प्रदायिक सद्भावना का प्रतीक माना जाता है।
    - रामदेवजी को मुस्लिम भक्त रामसा पीर व हिंदु कृष्ण का अवतार मानते है।
    रामदेवजी के मेले का मुख्य आकर्षण-कामडिया पंथ के लोगों द्वारा किया जाने वाला तेरह ताली नृत्य है।
    रामदेव जी की फड़ रावण हत्था नामक वाद्ययंत्र के साथ बाँची जाती है।
    - सभी लोक देवताओं में सबसे लम्बा गीत रामदेव जी का ही है।
    - रामदेवजी के भक्तों द्वारा गाए जाने वाले गीत बयावले कहलाते है।
    - रामदेवजी के मेघवाल भक्तों को रिखीजाँ कहा जाता है।
    राजस्थान के लोक देवता
    रामदेव जी का कुल - कंवर वंश के ठाकुर व अर्जुन के वंशज
    रामदेव जी का वाहन - घोड़ा लीला प्रतीक चिन्ह - पगल्ये (पदचिन्ह) पंचरंगी ध्वजा - नेजा रचना
    अवतार की तिथि - भाद्रपद शुक्ला द्वितीया (बाबे-री-बीज)
    रात्रि जागरण - जम्बो/नम्मा उपनाम - रामसापीर, रूणेचा का धणी चलाया गया पंथ - कामड़िया पंथ
    हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करने पर जोर। -1931 ई. रामदेव जी की समाधि पर बीकानेर महाराजा, गंगासिंह ने मंदिर बनवाया।

    2. गोगाजी

    gogan ji
    राजस्थान के पाँच पीरो मे सबसे पहला नाम गोगाजी का आता है जो जेवर ददेरवा (चुरू की राजगढ़ तहसील) के चौहान शासक थे। गुजराती पुस्तक श्रावक व्रतादि-अतिचार, रणकपुर प्रशस्ति व दयालदास के अनुसार इन्होने अपने मौसेरे भाईयों अर्जन व सुर्जन के विरूद्ध गायों को बचाने के लिये भीषण युद्ध किया व वीर गति को प्राप्त हुए। भाद्रपद की कृष्ण नवमी को गोगानवमी के रूप में मनाया जाता है जिसमें यौद्धा के रूप मे इनकी पूजा होती है। सर्प दंश के उपचार मे गोगाजी की अर्चना की जाती है। इनकी सर्पमूर्ति स्थल प्रायः गाँवों मे खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है। नौ गाँठों वाली इनकी राखी (गोगा राखड़ी) हल चलाते समय हल व हाली दोनों के बांधी जाती है।
    गोगाजी - साँपों के देवता (गोगाजी नाग वंशीज चौहान तथा पांच पीरों में सबसे प्रमुख माने जाते है
    मुख्यमंदिर - गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) अन्यमंदिर - ददरेवा (शीशमेड़ी-चुरू), ओल्डी सांचौर 
    जन्म स्थान - ददरेवा, चुरू (संवत् 1003) -गोगाजी का निवास स्थान खेतड़ी वृक्ष के नीचे।
    -गोरखनाथ जी के आशीर्वाद से गोगाजी का जन्म हुआ।
    विशेष - गोगाजी का मेला प्रतिवर्ष गोगामेड़ी में भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगा नवमी) को लगता है।
    - गोगाजी का मेला हिन्दु मुस्लिम एकता का प्रतीक है।
    - गोगाजी को महमूद गजनवी ने जाहर पीर (साक्षात् देवता के समान प्रकट होने वाला) कहा था जबकि हिन्दु
    इन्हें विष्णु का अवतार मानते है।गोगाजी के मंदिर का मुख्य आकर्षण मंदिर की आकृति मकबरेनुमा व ड्योढ़ी पर बिस्मिलाह का चित्रांकन है।
    - मंदिर का निर्माण गंगासिंह ने करवाया मुहम्मद गजनवी से लड़ते वक्त गोगाजी का सिर ददरेवा (चुरू) में गिरा जिसे शीर्ष मेड़ी कहते है।
    गोगाजी के पिता - जेवरसिंह, गोगाजी की माता - बाछल, गोगाजी की पत्नि - कमल-दे, गोगाजी का कुल - नागवंशीय चौहान, गोगाजी का घोड़ी - नीला घोड़ा, प्रतीक- भाला लिए घुड़सवार व सर्प,  समाधि स्थल - गोगामेडी, उपनाम - जाहरपीर- साँपों का देवता- गोगाजी ने धर्म रक्षार्थ हेतु मुस्लिम शासकों से 11 बार युद्ध किया। फड़ के साथ वाद्ययंत्र - डेरू व मादल नोट- गौरक्षा व मुस्लिम आक्रान्ता महमूद गजनवी से देश की रक्षार्थ अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले गोगाजी की पूजा बचाव हेतु किसान अच्छी फसल के लिए हल व हाली के राखी बाँधते है। जिसे गोगा राखड़ी कहा जाता है।

    3. पाबू जी

    पाबू जी

    पाबूजी का जन्म मारवाड़ के राव आसथान के पुत्र धांधल जी राठौड़ के यहां 1239 ई. में हुआ। अपने बहनोई जायल (नागौर) नरेश जींद राव खीची द्वारा देवल चारणी की गायों को घेरे जाने के विरूद्ध पाबूजी ने कड़ा संघर्ष किया और वीर गति को प्राप्त हुये पाबूजी ऊँटों के देवता के रूप में पूजे जाते है। इनकी यश गाथा 'पाबूजी की फड़' में संग्रहित है।
    पाबूजी - प्लेग रक्षक व ऊँटो के देवता
    मुख्य मंदिर - कोलुमन्ड (जोधपुर)
    विशेष - कोलुमंड मे प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला लगना है। 
    - मारवाड़ में ऊँट लाने का श्रेय पाबूजी को ही है।
    - रायका/ रेबारी जाति इन्हें अपना आराध्यदेव मानती है।
    - मेहरजाति के मुसलमान इन्हें पीर मानकर पूजा करते है जबकि हिन्दु इन्हें लक्ष्मण का अवतार मानते है।
    - इनके मेले का मुख्य आकर्षण पाबूजी की फड़ वाचन के समय रावण हत्थे का प्रयोग है।
    - पाबूजी की फड़ राजस्थान के सभी लोक देवताओं मे सबसे छोटी फड़ है। - इन्होने धोरी जाति को संरक्षण दिया था, जबकि पाबूजी से संबंधित गाथा गीत, पाबूजी के पवाड़े माठ वाद्ययंत्र के साथ नायक व रेबारी जाति के द्वारा गाये जाते है।
    जन्म - कोलु गाँव (1239 ई. में कोलुमण्ड गांव (फलौदी, जोधपुर) में हुआ)
    उपनाम लक्ष्मण के अवतार, ऊंटों के देवता, प्लेग रक्षक देवता, गायों के देवता
    पिता - धाँधल जी राठौड़
    पत्नि - अमरकोट के शासक सूरजमल सोढ़ा की पुत्री सुपियार सोढ़ी (फुलम दे)
    कुल - धाँधलोत शाखा के राजपूत राठौड़ व राव सीहा के वंशज
    घोड़ी - केसर कालमी (काला रंग) पाबुजी को यह घोड़ी देवल चारणी द्वारा दी गयी थी।
    प्रतीक - भालाधारी अश्वारोही
    1276 ई. में जोधपुर के देचु गांव में पाबुजी अपने बहनोई श्री जींदराव खींची से देवल चारणी
    की गायों को छुड़ाते हुए वीर गति को प्राप्त हो गये।
    पाबुजी की पत्नी फूलमदे पाबुजी के वस्त्रों के साथ सती हो गयी।
    पाबुजी का प्रतीक चिन्ह-भाला लिये अश्वारोही बांयी ओर झुकी पाग (पगड़ी)।
    - पाबुजी रा छन्द की रचना बीठूसूजा ने की।
    - पाबूजी रा दोहा- लघराज।
    पाबूजी के पावड़े 'माठ' वाद्य यंत्र के साथ थोरी जाति के लोगों द्वारा बांचे जाते है।
    पाबूप्रकाश- आशिया मोडजी की रचना (पाबूजी की जीवनी)।
    कोलुमण्ड में चैत्र अमावस्या को पाबूजी का मेला लगता है।
    पाबुजी के भक्तों द्वारा थाली नृत्य किया जाता है। 
    पाबूधणी री रचना - थोरी जाति द्वारा सारंगी पर किया जाने वाला पाबूजी का यशोगान।
    पाबूजी नारी सम्मान, गोरक्षा, शरणागत रक्षा एवं वीरता के लिये प्रसिद्ध है।
    नोट - पाबूजी विवाह के समय सूचना मिलते ही देवल चारण की गायो को मुक्त कराने के लिए
    विवाह मण्डप से उठकर बहनोई जायल नरेश जींदराव खींची से युद्ध करने चले गये तथा वीरगति को प्राप्त हुए।राजस्थान सामान्य ज्ञान के महत्वपूर्ण प्रश्नो का टेस्ट लगाय 

    4. हरभूजी / हडबू जी

    हरभूजी भूडेल (नागौर) ग्राम के महाराजा सांखला के पुत्र थे।
    शस्त्र त्याग कर ये बाली जी के शिष्य बन गये। ये राव जोधा के समकालीन थे इन्होने राव जोधा को मेवाड़ के अधिकार से मंडोर मुक्त कराने हेतु अपना आशीर्वाद व कटार भेंट की। मंडोर विजय के पश्चात राव जोध ने कृतज्ञता स्वरूप बेंगरी ग्राम अर्पण किया। हरभूजी बड़े सिद्ध योगी थे। जाति वर्ग का भेद किये बिना वे सबकों कृतार्थ करते थे। ईश्वर स्मरण व सत्संग का महत्व बताते हुए इन्होने निम्न माने जाने वाली जातियों मे आध्यात्मिक चेतना जागृत की। इनके प्रमुख स्थान 'बेंगटी' मे मंदिर मे मनौती पूर्ण होने पर जातरू 'हरभूजी की गाड़ी' की पूजा करते है।
    हडबू जी - शकुन शास्त्र के ज्ञाता
    मुख्यमंदिर - गटी गाँव, फलौदी, जोधपुर
    विशेष - मुख्यमंदिर का मुख्य आकर्षण पूजा स्थल पर
    मूर्ति के स्थान पर हड़बू जी की गाड़ी की पूजा की जाती है।
    - हडबू जी रावजोधा के समकालीन थे।
    हडबू जी के पुजारी सांखला जाति के होते है। जन्म स्थान - भूडोल "नागौर"
    (15 वीं शताब्दी में, राव जोधा (1438-89 ई.) के समकालीन थे) बाबारामदेव के मौसरे भाई, पांचों पीरों के तीसरा स्थान है।
    पिता - मेहाजी साँखला (भूडोल के शासक)
    गुरू - बालिनाथ
    --संकट काल में राव जोधा को तलवार भेंट की राव, जोधा ने ह जी को बेंगटी की जागीर प्रदान की। 
    - छकड़ा गाड़ी में हरबू जी पंगु गायों के लिए दूर-दूर से घास भरकर लाते है।
    सवारी-सियार, पुजारी-परमार सांखला राजपूत।
    बेंगटी में मंदिर का निर्माण 1721 ई. महाराजा अजित सिंह द्वारा
    --खेतिहर और निम्न जातियों को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाने में
    महत्वपूर्ण योगदान, मूर्तिपुजा तीर्थ यात्रा का विरोध, ईश्वर स्मरण, सत्संग, अच्छे कर्म पर जोर।
    शकुन शास्त्र ज्ञाता, भविष्य दृष्टा तथा वचनसिद्ध थे।
    - रावजोधा की ओर से मेवाड़ की सेना सिसोदिया अक्का व अहाड़ा हिंगोला) से मंडोर के युद्ध (1453 ई.) में शहीद।
    - हडबू जी रामदेव जी के मौसरे भाई थे।

    5. तेजाजी


    तेजाजी मारवाड़, अजमेर व किशनगढ़ मे मुख्यतः जाट समुदाय द्वारा पूजित तेजाजी का जन्म, माघ शुल्ला चतुर्दशी वि.सं. 1130 को नागौर जिले के खड़नाल ग्राम मे हुआ था। तेजाजी ने भी गौ रक्षा में अपने प्राणो की बाजी लगाई। मेरेमीणा से गायो की रक्षा करने के बाद जब वे घायलावस्था मे थे तो सर्प दंश से उनकी मृत्यु हो गई। ऐसी मान्यता है कि सर्प दंश से पीड़ित व्यक्ति यदि दांये पैर मे तेजाजी की तांत (डोरी) बांध ले तो विष नही चढ़ता। राजस्थान के हर गाँव मे तेजाजी का मंदिर मिल जाता है।
    भाद्रपद शुक्ला दशमी को इनकी स्मृति मे परबतसर मे विशाल पशु मेला लगता है।
    वीर तेजाजी- काला-बाला का देवता
    मुख्य मंदिर - सुरसरा, अजमेर
    अन्य मंदिर - सौंदरिया, अजमेर,पर्वतसर - नागौर ,ब्यावर व भावता (अजमेर)खरनाल (नागौर)
    विशेष - भाद्रपद सुदी दशमी से पूर्णिमा तक पर्वतसर (नागौर)
    -तेजाजी के संबंध मे रोचक तथ्य यह है कि उन्होनें सर्पदंश के इलाज के लिए सबसे पहले गोबर की राख व गौमूत्र केप्रयोग की शुरूआत की थी।
    जन्म स्थान - खड़नाल, नागौर (29 जनवरी, 1074 ई0 में खड़नाल/खरनाल (नागौर) में माघ शुक्ला चतुदर्शी को हुआ।)
    कुल- नागवंशीय जाट पत्नी - पैमल-दे (पनेर के रायमल जी झांझर की पुत्री) घोड़ी - लीलण
    उपनाम - गायो का मुक्तिदाता (लाछा गुजरी की गायों को मेर (आमेर) के मीणाओं से छुड़वाया) नागो का देवता काला-बाला का देवता
    -जाटो के आराध्य देव प्रतीक तलवार धारी, अश्वरोही
    नोटः- तेजाजी के चबूतरे को थान व पुजारी को घोड़ला कहा जाता है।
    तेजाजी ने मेरो से लाछा गुजरी की गाय मुक्त कराते हुए प्राणोत्सर्ग किया।
    मारवाड़ के जाटो के इतिहास पुस्तक मे तेजाजी का धौल्पा गौत्र बताया गया। धौल्या गौत्र की महिलाएँ पुनर्विवाह नहीं करती।
    किसान अच्छी फसल के लिए तेजाजी की पूजा करते है।
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    6. मेहाजी मांगलिया


    मांगलिया - मांगलिकों के इष्टदेव मुख्यमंदिर - बापणी गाँव, जोधपुर विशेष बापणी गाँव जोधपर में भाद्रपद कष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी) को मेला लगता है। इनके भोपों से संबंधित रोचक तथ्य यह है कि इनके भोपों की वंशवृद्धि नहीं होती है। बापणी गाँव 'जोधपुर' (15 वीं शताब्दी, राव चुडा के समकालीन, मांगलियों के इष्ट देव।)
    - किरड़ काबरा गायों की रक्षा की।
    जैसलमेर के राव रणगदेव भाटी से युद्ध करते शहीद।
    कृष्णा जन्माष्टमी को मेहाजी का मेला बापनी गाव (आसिया) में प्रमुख पूजा स्थल।
    कुल - मांगलिया राजपूत
    पालन-पोषण ननिहाल मांगलिया गोत्र में होने के कारण मेहाजी मांगालिया नाम से प्रसिद्ध पूजा करने वाले भोपों की वंश वृद्धि नहीं होती।

    7. मल्लीनाथ जी


    मल्लीनाथ जी - भविष्य दृष्टा व चमत्कारी पुरूष
    मुख्य मंदिर - तिलबाड़ा, बाड़मेर
    विशेष - लूणी नदी के किनारे तिलवाड़ा बाड़मेर मे
    चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक मेला लगता है।
    इनके मेले का मुख्याकर्षण - थारपारकर नस्ल की गाय की सर्वाधिक खरीद-फरोख्त है।
    इनकी रानी रूपा-दे का मंदिर भी तिलवाड़ा में है।
    जन्म - जोधपुर 1358 ई.
    - मल्लीनाथ जी निर्गुण व निराकर ईश्वर को मानते है।
     इन्ही के नाम पर बाड़मेर के मालाणी क्षेत्र का नाम पड़ा।

    8. तल्लीनाथ जी 


    तल्लीनाथ जी - प्रकृति प्रेमी लोक देवता
    मुख्य मंदिर - पंचमुखी पहाड़, पांचोटा गाँव, जालौर ।
    विशेष - पंचमुखी पहाड़ के आस-पास के क्षेत्र को स्थानीय लोग ओरण मानते है। यहाँ कोई पेड़-पौधों को नही काटता है।
    वास्तविक नाम - गंगदेव राठौड़  पिता शेरगढ़ ठिकाने के शासक वीरमदेव
    गुरू - जालन्धर नाथ
    उपनाम - आयुर्वेद के ज्ञाता
    आज भी पांचोटा गाँव के लोग किसी व्यक्ति या पशु के बीमार पड़ने या जहरीला कीड़ा काटने पर इनके नाम का डोरा बाँधते

    9. देवबाबा 

    देवबाबा - ग्वालों के देवता कीड़ा काटने पर इनके नाम का डोरा बाँधते
    मुख्य मंदिर - नगला जहाजपुर, भरतपुर
    विशेष - भाद्रपद शुक्ल पंचमी व चैत्र शुक्ल पंचमी को नग्ला जहाज पुर मे मेला लगता है।
    जालोर के प्रसिद्ध लोकदेवता।
    स्वभाव से प्रकृति प्रेमी व ग्वालों के देवता
    इनकी याद में श्रद्धालु लोग चरावाहों को भोजन करते है

    10  भूरिया बाबा/गौतमेश्वर 

    भूरिया बाबा/गौतमेश्वर - मीणाओं के इष्टदेव 
    जन्म - गौड़वाड़ क्षेत्र, शिवगंज तहसील (सिरोही) सूकड़ी नदी के किनारे।
    मीणा जनजाति के लोक देवता
    मीणा जाति के लोग इनकी झूठी कसम नहीं खाते।

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