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चितोड़गढ़ दुर्ग सम्पूर्ण जानकारी : Rajasthan Gk with Tricks

इस किले के बारे में कहा जाता है कि "गढ तो चित्तौड़गढ बाकी सब गढैया"। यह दुर्ग क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा दुर्ग है। यह 2.8 किमी

चितोड़गढ़ दुर्ग चित्रकुट पहाड़ी पर बना, राजस्थान का प्राचीनतम गिरी दुर्ग है। इस दुर्ग का निर्माण मेवाड़ शासक चित्रांगद मौर्य ने 8 वीं सदी मैं करवाया था। इस दुर्ग को राजस्थान का गौरव, राजस्थान के दक्षिण पूर्व का प्रवेशद्वार तथा दुर्गों का सिरमौर कहा जाता है। यह बेडच नदी के बाय किनारे पर मेसा के पठार पर स्थित विशालतम दुर्ग है। चित्तौड़ के दुर्ग को 21 जून, 2013 में युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया।

इस किले के बारे में कहा जाता है कि "गढ तो चित्तौड़गढ बाकी सब गढैया"। चितोड़गढ़ दुर्ग क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा दुर्ग है। यह 2.8 किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है तथा 180 मीटर पहाड़ी पर स्थित है। 


चित्तौड़गढ़ दुर्ग के प्रमुख दर्शनीय स्थल

विजय स्तम्भ

मेवाड के महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में  439 में भगवान विष्णु के निमित विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया। सांरगपुर का युद्ध (437 ई.) के दौरान इसे विष्णु स्तम्भ भी कहा जाता था। 

यह स्तम्भ 9 मंजिला तथा 20 फीट ऊंचा है। इस स्तम्भ के चारों ओर हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां अंकित है। इसे भारतीय इतिहास में मूर्तिकला का विश्वकोष अथवा अजायबघर भी कहते है। विजय स्तम्भ का शिल्पकार जैता, नापा और पूंजा को माना जाता है। 

जैन कीर्ति स्तम्भ

चित्तौडगढ़ दुर्ग में स्थित जैन कीर्ति स्तम्भ का निर्माण अनुमानतः बघेरवाल जैन जीजा द्वारा 11 वीं या
12 वी. शताब्दी मैं करवाया गया। यह 75 फुट ऊंचा और 7 मंजिला है। विद्वानों ने कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति का रचयिता कवि अत्रि तथा उसके पुत्र महेश को माना जाता है।

कुम्भ श्याम मंदिर, मीरा मंदिर, पदमनी महल, फतेह प्रकाश संग्रहालय तथा कुम्भा के महल्र (वर्तमान मैं
जीर्ण -शीर्ण अवस्था आदि प्रमुख दर्शनिय स्थल है। इस दुर्ग के सात द्वार थे। दुर्ग के बाहर बाघ सिंह की छत्तरी है। यहां स्थित कालीमाता मंदिर पहले सूर्य मंदिर था।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के साके

प्रथम साका

सन्‌ 303 ई. मैं मेवाड़ के महाराणा रावल रतनसिंह चित्तौड़ का प्रथम साका हुआ। चित्तौडगढ़ को आक्रान्त करने वाला आक्रान्ता अल्लाउद्दीन खिलजी था। उसने दुर्ग का नाम बदलकर खिजाबाद रखा चित्तौड़गढ के प्रथम साके में रतन सिंह के साथ सेनानायक गोरा व बादल (रिश्ते मे पदमिनी के थे) शहीद हुए।

चित्तौडगढ़ के प्रथम साके/ युद्ध का आंखों देखी अलाउद्दीन का दरबारी कबि और लेखक अमीर खुसरो ने अपनी कृति तारीख -ए-अलाई में प्रस्तुत किया। 

द्‌वितीय साका

534 ई. मैं मेवाड़ के शासक विक्रमादित्य के समय शासक बहादुर शाह ने किया। युद्ध के उपरान्त महाराणी कर्मावती ने जौहर किया।

तृतीय साका

सन्‌ 567 ई. में मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह के मुगल सम्राट अकबर ने आक्रमण किया था। चित्तौडगढ़ का तृतीय साका जयमल राठौड़ और पता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए प्रसिद्ध है।


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